Papita ki kheti | पपीता की खेती कैसे करें | Papaya Farming in Hindi | papite ki kheti के रोग एवं रोकथाम

पपीता पहले भारत में बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, गुजरात, असम, उत्तरांचल, जम्मू और कश्मीर और मिजोरम जैसे राज्यों में उगाया जाता था, लेकिन अब यह पूरे भारत में उगाया जाता है। .

अगर आप भी papita ki kheti करना चाहते हैं तो इस लेख में आपको पपीता की खेती कैसे करें (Papaya Farming in Hindi) और पपीते की खेती से कितना मुनाफा होता है, इसकी जानकारी दी जा रही है.

Table of Contents

papita ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Papaya Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)

papita ki kheti किसी भी उपजाऊ भूमि में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. पपीता को अच्छी जल निकास वाली मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। पी.एच. इसकी खेती में भूमि. मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.

Papaya Farming in Hindi

papita ki kheti किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है, लेकिन सर्दियों में पड़ने वाले पाले से इसके पौधों को काफी नुकसान होता है। इसके पौधे अधिकतम 44 डिग्री और न्यूनतम 5 डिग्री तापमान ही सहन कर सकते हैं.

papita ki kheti की तैयारी और उवर्रक (Papaya Field Preparation and Fertilizer)

पपीते की अच्छी पैदावार के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए |  इस प्रयोजन के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है। नतीजा यह हुआ कि बाकी खेत में लगी पुरानी फसलें पूरी तरह नष्ट हो गईं। इसके बाद पहली जुताई के बाद प्रत्येक हेक्टेयर में पुरानी गोबर की खाद डालनी चाहिए.

एक बार जब खाद को मिट्टी में डाल दिया जाता है, तो उसे रोटावेटर का उपयोग करके दो से तीन बार जुताई की जाती है। इस कारण गाय का गोबर खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाता है। इसके बाद खेत में पानी लगा दिया जाता है. जब खेत की मिट्टी सूखी हो जाती है तो उस समय खेत की जुताई की दर कम हो जाती है।

इसके बाद खेत में तख्ते लगाकर जमीन को समतल कर दिया जाता है, इससे खेत में जल संचयन की समस्या नहीं देखी जाती है. एक बार मिट्टी समतल हो जाने के बाद, पौधों की रोपाई के लिए खेत में गड्ढों तैयार की जाती हैं। पपीते के पौधों को अच्छी तरह विकसित होने के लिए सही मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

इसके लिए तैयार गड्ढों में गोबर के अलावा 200 gm नाइट्रोजन, 200 gm फास्फोरस और 400 gm पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. पौधों की खेती के 4 माह बाद पोषक तत्व प्रबंधन से गुणवत्तापूर्ण फल प्राप्त हुए।

papita ki kheti के उन्नत किस्म के बीज (Papaya Seeds Improved Varieties)

वर्तमान में, papita ki kheti की कई उन्नत किस्मों की खेती की जा रही है, जिन्हें कम समय में अधिक उपज देने के लिए उगाया जा रहा है, जिसमें अधिक उपज के लिए उगाई जाने वाली इजरायली और ताइवानी किस्मों की संकर किस्में भी शामिल हैं।

इसके अलावा पपीते की कई किस्में हैं, जिन्हें अच्छे मुनाफे के लिए उगाया जाता है, जिनमें निम्नलिखित किस्में शामिल हैं, पूसा ड्वार्फ, कोयंबटूर प्रजाति, कोयंबटूर-1, कोयंबटूर-6, अलावा पेन-1, कूर्ग हनीड्यू, पूसा नन्हा, पूसा , जाइंट, पूसा डिलीशियस, पूसा मेजेस्टी, पंत पपीता और शहद और भी बहुत कुछ।

papita ki kheti के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Papaya Plants Planting Right time and Method)

papita ki kheti के पौधों को पौध के रूप में दोबारा लगाया जाता है और इसके लिए इन्हें पॉलिथीन से बनाया जाता है। इसके बाद तैयार पौधों को पॉलिथीन से निकालकर उनके बिलों में रख दिया जाता है. अगर आप खेत में सीधी बुआई करते हैं तो उसमें आपको अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी.

इसीलिए सबसे पहले बीज नर्सरी या घर पर ही तैयार किये जाते हैं। इसके लिए पपीते के बीजों को शिशु बीजों में 10 सेमी की दूरी पर रोपना चाहिए और जब पौधे 20 सेमी के हो जाएं तो उन्हें निकालकर खाइयों में लगा देना चाहिए।

वैकल्पिक पपीते के पौधे किसी भी समय विकसित किये जा सकते हैं। हालाँकि, पपीते के पौधों को असिंचित क्षेत्रों में बरसात के मौसम वाले जून और जुलाई के महीनों में उगाना उचित माना जाता है, और इससे पौधों को पर्याप्त पानी मिलता है।

इसके अलावा अगर पौधे सिंचित क्षेत्रों में उगाए जाते हैं तो इसलिए आप इन्हें सितंबर, अक्टूबर और फरवरी से मार्च के महीने में उगा सकते हैं. इसके पौधों को विकास करने के लिए सही तापमान की आवश्यकता होती है.

papita ki kheti के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Papaya Plant Diseases and Prevention)

papita ki kheti के पौधे कई बीमारियों से भी प्रभावित होते हैं, जो उपज को काफी प्रभावित करते हैं। रिंगस्पॉट, डिस्टोसर्न, मोज़ेक लीफ कर्ल, एन्थ्रेक्नोज, जड़ और तना सड़न और कली और डंठल सड़न आदि जैसे विभिन्न रोग हैं, जो पपीते के पौधों पर बड़े पैमाने पर हमला करते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं।

इन रोगों की रोकथाम के लिए पौधे को सड़न को अवशोषित करके 5:5:20 के अनुपात में वोर्डोमिक्सचर से ढक देना चाहिए. इसके अलावा अन्य बीमारियों से बचाव के लिए पपीते के पौधों पर डाइथेन एम-45, 2 जीएम, मैंकोजेब या जेनेवे 0.2% से 0.25% या व्लाइटैक्स 3 जीएम का उचित दर पर छिड़काव किया जाता है.

papita ki kheti के पौधों की सिंचाई (Papaya Plant Irrigation)

papita ki kheti के पौधों की खेती भूमि की सतह थोड़ी ऊंचाई पर की जाती है. इसलिए उनके पौधों को पानी की बहुत अधिक आवश्यकता होती है. उनके पौधों को रोपण के तुरंत बाद पहली बार पानी दिया जाता है।

गर्मियों में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार पानी देना चाहिए और सर्दियों में इसके पौधों को 10 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए.

papita ki kheti के नर पौधे को अलग करना (Male Papaya Plant Separating)

पपीते के पौधे में तीन प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं, नर, मादा और उभयलिंगी पौधे। जब इसके पौधे परिपक्व हो जाते हैं तब उनकी पहचान की जाती है, नर पौधों की पहचान कर उन्हें अलग कर दिया जाता है।

एक एकड़ खेत में केवल 10 से 15 प्रतिशत नर पौधे ही मौजूद होने चाहिए. नर पौधों पर लंबे तने वाले फूल छोटे-छोटे गुच्छों में पाए जाते हैं।

papita ki kheti के पौधों निराई – गुड़ाई (Papaya Plants Weeding)

papita ki kheti के पौधों की सिंचाई करते समय पौधों के पास की मिट्टी बहुत कठोर हो जाती है, जिससे पपीते के पौधों की जड़ों को पर्याप्त वातन नहीं मिल पाता है।

पौधों को पर्याप्त वातायन सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर कंपोस्टिंग और कंपोस्टिंग की जाती है। पौधे में हर तीन बार पानी देने के बाद खाद बनाना उपयोगी होता है। इसी वजह से इसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है.

papita ki kheti के फलो की तुड़ाई (Papaya Fruit Plucking)

पपीते के पौधे रोपण के 10 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। पपीते के फल पहले हरे होते हैं, जब बीज पीले रंग में सुन्दर दिखने लगते हैं, उस समय बीजों की तुड़ाई कर ली जाती है।

इसके कच्चे बीजों को कीलने से दूध निकलता है और पके बीजों से तरल जैसा पदार्थ निकलता है। इस पर कच्चे और पके फल देखे जा सकते हैं.

papita ki kheti के फलो का संरक्षण, पैदावर और लाभ (Papaya Fruit Protection, Yield and Benefits)

एक बार तोड़ने के बाद पपीते के फलों को अच्छी तरह संग्रहित किया जाता है, इसके लिए फलों को सादे अखबार या कागज में लपेटा जाता है। पपीते के फलों को तनाव से बचाना चाहिए। अगर फल को किसी भी तरह से स्टोर कर लिया जाए तो वह जल्द ही खराब होने लगता है।

इसलिए फल तोड़ते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि फल टूटकर गिरे नहीं या उन पर खरोच न पड़ें। क्योंकि यह कम समय में ही फल को नष्ट कर देता है.

papita ki kheti के रोपण से प्रति हेक्टेयर लगभग 35 से 40 टन उपज होती है। इसका बाजार मूल्य अच्छा है. इससे भाई किसान एक सीजन में लगाई गई पपीते की फसल से आसानी से एक से डेढ़ लाख तक की कमाई कर अच्छा रिटर्न पा सकते हैं.

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papita ki kheti FaQs?

पपीता का पेड़ कितने साल तक फल देता है?

चार साल तक

पपीता कौन से महीने में लगाया जाता है?

जुलाई से सितम्बर और फरवरी-मार्च

पपीता की खेती कब और कैसे की जाती है?

इसकी खेती का उचित समय फरवरी और मार्च एवं अक्टूबर के मध्य का माना जाता है, क्योंकि इस महीनों में उगाए गए पपीते की बढ़वार काफी अच्छी होती है।

1 एकड़ में कितने पपीता के पौधे लगते हैं?

एक हजार पौधे लगाए जा सकते हैं।

पपीता उगाने में कितना समय लगता है?

बारह महीने तक का समय

पपीता का पेड़ कितने दिन में बढ़ता है?

260 से 290 दिनों बाद इस किस्म में फल लगना प्रारम्भ हो जाते है।

पपीता के पौधे की उम्र कितनी होती है?

चार साल तक

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