Neel ki kheti | नील की खेती कैसे होती है | Indigo Farming in Hindi | नील की खेती से लाभ | Nil ki kheti

भारत में Neel ki kheti की फसल मुख्य रूप से बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में उगाई जाती है। इस लेख के माध्यम से आपको नील की खेती कैसे की जाती है इसकी जानकारी दी जा रही है, साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि नील की खेती से आप कैसे लाभ उठा सकते हैं।

नील की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान (Indigo Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)

Neel ki kheti के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, और मिट्टी अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। इसे जल जमाव वाली मिट्टी में नहीं लगाना चाहिए. Neel ki kheti की अच्छी फसल के लिए गर्म, शुष्क जलवायु अनुकूल मानी जाती है।

नील के पौधे को बारिश की बहुत जरूरत होती है, क्योंकि इसके फूल बारिश के मौसम में सबसे अच्छे होते हैं। इसके अलावा अत्यधिक गर्मी और सर्दी का मौसम भी उनके काम के लिए उपयुक्त नहीं है। उसके पौधों को सही मात्रा में गर्मी की आवश्यकता होती है।

Neel ki kheti

नील की फसल के लिए खेत की तैयारी (Indigo Crop Field Preparation)

Neel ki kheti के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है. सबसे पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है. जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके बाद खेत में थोड़ी मात्रा में पुराना गोबर डाला जाता है। निषेचन के बाद रोटावेटर का उपयोग करके जुताई की जाती है।

इससे खरपतवार मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाते हैं। एक बार जब खाद मिट्टी में मिल जाती है तो Neel ki kheti की सिंचाई हो जाती है। इसके बाद यदि खेत की मिट्टी ऊपर से भुरभुरी दिखे तो खेत में पाटा लगाकर  जमीन को समतल कर लेते हैं।

नील के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Indigo Seeds Planting Right time and Method)

नील की खेती में बीजों को बीज द्वारा उगाया जाता है। इसके बीजों को ड्रिल विधि से बोया जाता है. खेत में बीज बोने से पहले खेत में एक से डेढ़ फीट की दूरी पर कतारें तैयार की जाती हैं। इस पंक्ति में प्रत्येक बीज को एक फुट की दूरी पर रखना सुनिश्चित करें। इसके बीज सिंचित क्षेत्रों में अप्रैल माह में तथा असिंचित क्षेत्रों में वर्षा ऋतु में बोये जाते हैं। इससे पौधे कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं और पैदावार अच्छी होती है.

नील के पौधों की सिंचाई (Indigo Plants Irrigation)

Neel ki kheti के पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती. अप्रैल माह में उत्पादित बीज को वर्षा ऋतु से पहले बोया जाता है। बारिश शुरू होने से पहले उनके पौधों को दो से तीन सिंचाई की जरूरत होती है.

यदि बरसात के मौसम में बीज बोया जाए तो केवल एक या दो पानी की ही आवश्यकता होती है। नील की फसल तीन से चार महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

नील की खेती में उर्वरक की मात्रा (Indigo Cultivation Fertilizer Amount)

Neel ki kheti की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी के दौरान पर्याप्त मात्रा में उर्वरक की आपूर्ति करना आवश्यक है। इसके लिए खेत की पहली जुताई के बाद 8 से 10 गाड़ी पुराना गोबर डालकर मिट्टी में मिला दें.

आप प्राकृतिक खाद की जगह कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग कर सकते हैं। उनके पौधे मिट्टी से नाइट्रोजन की आपूर्ति स्वयं करते हैं और इस कारण उन्हें उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती है।

नील के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Indigo Plants Weed Control)

Neel ki kheti के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। उनके पौधों को दो बार निराई-गुड़ाई की जरूरत पड़ती है. इसके प्रथम खरपतवार की कटाई बुआई के 25 दिन बाद की जाती है तथा दूसरे खरपतवार की कटाई 15 से 20 दिन के अंतराल पर की जाती है।

नील के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Indigo Plants Harvesting, Yield and Benefits)

Neel ki kheti के पौधे बीज बोने के तीन से चार महीने में उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। उसके बाद वे अपने पौधों की कटाई कर सकते हैं। नील के पौधों की कटाई कई बार की जा सकती है। यदि आप एक से अधिक बार काटना चाहते हैं, तो पौधों को फूल आने से पहले काटें। इसके पौधों की कटाई जमीन से ऊंचाई पर की जाती है.

कटाई के बाद इन पौधों को छायादार जगह पर सुखाया जाता है। इसके बाद सूखे पत्तों को बाजार में बेचने के लिए ले जाया जाता है। इन सूखी पत्तियों से नील निकालने के लिए पत्तियों को काटा जाता है।

इसके अलावा नील इसकी सूखी पत्तियों से भी प्राप्त होता है। ये हरी पत्तियाँ कटाई के तुरंत बाद बेच दी जाती हैं। लेकिन हरी पत्तियों का बाजार मूल्य सूखी पत्तियों की तुलना में काफी कम होता है।

वर्तमान में, Neel ki kheti से बिहार के किसानों को प्रति हेक्टेयर खेत से 7 क्विंटल सूखी पत्तियां मिलती हैं। जिसका बाजार मूल्य लगभग 50 से 60 रूपये प्रति किलोग्राम है। इस कारण भाई किसान एक एकड़ खेत में एक बार में उगाई गई नील की फसल से 50 हजार रुपये तक की कमाई कर सकते हैं.

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Neel ki kheti FaQ?

नील की खेती करने से क्या होता है?

नील की खेती की शुरुआत भारत में की गई थी आज इसकी खेती रंजक के रूप में की जाती है तथा रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से भी नील तैयार किया जा रहा है लेकिन आज के समय में बाजार में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ रही है इसी कारण किसानों ने नील की खेती करना शुरू कर दिया है नील की खेती करने से भूमि की उर्वरता में भी वृद्धि होती है …

भारत में नील की खेती की शुरुआत कहाँ से हुई?

बंगाल बिहार

नील की खेती कैसे की जाती है?

नील बुवाई ड्रिल विधि द्वारा की जाती है. सिंचित क्षेत्रों में अप्रैल में तथा असिंचित क्षेत्रों में जून-जुलाई में बुवाई का काम करना चाहिए. इससे पौधा कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाता है और अच्छी उपज भी मिलती है. खेत में बीज बोने से पहले खेत में एक से डेढ़ फीट की दूरी रखते हुए कतारें तैयार कर लेनी चाहिए.

क्या हम घर पर नील का पौधा उगा सकते हैं?

चिल्टर्न सीड्स सलाह देते हैं कि बीजों को घर के अंदर 24 घंटे तक गर्म पानी में भिगोकर रखें और फिर तुरंत उन्हें एक छोटे बीज के बर्तन में लगभग 1/5 इंच गहराई में रोपें। मिट्टी को नम रखें और कमरे का तापमान 60 से 70 डिग्री फ़ारेनहाइट पर रखें। बीज को अंकुरित होने में 30 से 90 दिन लग सकते हैं।

नील की खेती के लिए कौन कौन सी जलवायु उपयुक्त होती है?

नील की खेती के लिए उष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त होती है।

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