Tarbooj ki kheti | तरबूज की खेती कैसे करें | Watermelon Farming in Hindi | तरबूज की खेती का समय | Watermelon Cultivation

गर्मियों के दौरान तरबूज की बाज़ारो में भारी मांग रहती है, इसलिए किसान तरबूज उगाकर अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। अगर आप भी Tarbooj ki kheti का फैसला कर रहे हैं तो इस लेख में आपको Tarbooj ki kheti (Watermelon Farming in Hindi) और तरबूज कब उगाएं की जानकारी दी जा रही है।

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भारत में Tarbooj ki kheti का उत्पादन (Watermelon Production in India)

भारत में तरबूज व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है और इसलिए इसका उत्पादन भी बड़ी मात्रा में होता है। यह एक ग्रीष्म ऋतु फसल है, जिसके लिए इसे भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात राज्यों में उगाया जाता है।

Tarbooj ki kheti का समय,उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Watermelon Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

Tarbooj ki kheti को किसी भी उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है। बलुई दोमट अच्छी फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि अम्लीय मिट्टी में अधिक तरबूज उत्पन्न होता है। पी.एच. इसकी खेती में भूमि. मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए. जहां भाई किसान कोई फसल नहीं उगा पाते वहां तरबूज उगाते हैं.

तरबूज़ शुष्क मौसम का पौधा है और इस कारण कम आर्द्रता में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके पौधे गर्म और ठंडे दोनों मौसम को सहन कर सकते हैं. लेकिन सर्दियों की ठंड पौधों की वृद्धि को नुकसान पहुंचाती है। पेड़ पौधे अधिकतम 39 डिग्री और न्यूनतम 15 डिग्री तापमान ही सहन कर सकते हैं।

Tarbooj ki kheti की किस्में (Watermelon Varieties)

क्रम संख्याउन्नत क़िस्मउत्पादन समयउत्पादन
1.शुगर बेबी85 से 90 दिन200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
2.पूसा बेदाना85 से 90 दिन200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
3.आशायी यामातो85 दिन225 से 240 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
4.न्यू हेम्पशायर मिडगट85 दिन250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
5.दुर्गापुरा केसर85 से 90 दिन220 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
6.अर्का ज्योति95 से 100 दिन350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
7.अर्का मानिक110 से 115 दिन60 टन प्रति हेक्टेयर
8.डब्लू 1985 से 90 दिन50 टन

Tarbooj ki kheti की तैयारी और उवर्रक (Watermelon Field Preparation and Fertilizer)

tarbooj ki kheti

Tarbooj ki kheti की जुताई कर उसे अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है | इस कारण शुरुआत में खेत की गहरी जुताई की जाती है, जिससे खेत में पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। जुताई के बाद खेत की मिट्टी को धूप के लिए छोड़ दिया जाता है.

इसके बाद खेत में 6 से 8 गाड़ी पुराना गोबर डालकर दो से तीन तिरछी जुताई की जाती है, जिससे गोबर की खाद खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाती है। इसके बाद सिंचाई की जाती है, सिंचाई के बाद यदि खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तो खेत की दोबारा जुताई की जाती है।

इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | मिट्टी के भुरभुरा होने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है |

इसके बाद समतल जमीन पर 5 से 6 फीट की दूरी पर लंबी नालीनुमा क्यारियां तैयार की जाती हैं. फास्फोरस, यूरिया, कार्टब, पोटाश की पर्याप्त मात्रा को गोबर के साथ मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को भर दिया जाता है।

Tarbooj ki kheti के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Watermelon Seeds Planting Right time and Method)

Tarbooj ki kheti के बीजो की रोपाई बीज के रूप में की जाता है। तरबूज भारत के मैदानी इलाकों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। प्रति हेक्टेयर खेत में लगभग 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

इन बीजों को 1.5 सेमी की गहराई के साथ 2 से 3 फीट की दूरी पर तैयार खाइयों में बोया जाता है। उनके खेत में जलभराव न हो इसका विशेष ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए बीज बोने के बाद गड्ढों को मुलायम पॉलिथीन से ढक देते हैं और पॉलिथीन में कुछ-कुछ दूरी पर हल्के छेद कर देते हैं.

इससे गड्डो में जलभराव का खतरा कम हो जाता है और पौधों को पर्याप्त धूप मिलती है। तरबूज के बीज बोने के लिए मध्य फरवरी से मध्य मार्च के बीच का महीना उपयुक्त माना जाता है। इससे किसानों को अधिक उत्पादन मिलता है.

Tarbooj ki kheti के पौधों की सिंचाई (Watermelon Plant Irrigation)

यदि तरबूज के बीजो की रोपाई नदी के किनारे रोपे जाएं तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि इसके पौधे की जड़ों को जमीन से पानी आसानी से मिल जाता है.

मैदानी एवं शुष्क क्षेत्रों में उत्पादित बीजों के उत्पादन में सिंचाई का अत्यधिक महत्व है। ऐसे में पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद और दूसरी फसल 3 से 4 दिन बाद करनी चाहिए. एक बार जब इसके बीज अंकुरित होकर पौधा बन जाएं तो उस दौरान इसके पौधों को साप्ताहिक रूप से पानी देना चाहिए.

Tarbooj ki kheti के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Watermelon Plants Weed Control)

तरबूज के पौधों को अधिक खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है। निराई-गुड़ाई विधि का प्रयोग करना। उनके पौधों में पहली खरपतवार खेत में खरपतवार निकलने के एक महीने बाद बनती है।

खुदाई के बाद पौधों की जड़ों पर मिट्टी लगाई जाती है, जिससे पौधे अच्छे से बढ़ते हैं और अधिक उपज देते हैं। फसल के पौधों को अधिकतम तीन से चार खरपतवार काटने की आवश्यकता होती है।

Tarbooj ki kheti के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Watermelon Plant Diseases and Prevention)

फल की मक्खी 

फल मक्खी रोग फल पर हमला करता है, और इसलिए फसल गंभीर रूप से प्रभावित होती है। यह रोग नारियल के फल पर आक्रमण करके उसमें छेद कर देता है जिससे बीज बिल्कुल बेकार हो जाता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए धुंध के पौधों पर मैलाथियान 50 ईसी या एंडोसल्फान 35 ईसी का छिड़काव किया जाता है और रोगग्रस्त फलों को तोड़कर तोड़ दिया जाता है।

डाउनी मिल्ड्यू

प्रभावित पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर गुलाबी रंग का पाउडर बन जाता है। जिसके कारण पैदावार पर काफी असर पड़ता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर जैनेब या मैंकोजेब 0.03% की उचित दर से सप्ताह में 3 से 4 बार छिड़काव करना चाहिए.

फ्यूजेरियम विल्ट 

इस रोग से प्रभावित पौधे पूरी तरह नष्ट होकर गिर जाते हैं। यह रोग पौधों पर किसी भी अवस्था में देखा जा सकता है. नारियल के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम से उपचारित किया जाता है और 0.3% कैप्टान का जमीन पर छिड़काव किया जाता है।

तरबूज का लाल कीड़ा

यह रोग रोगज़नक़ के रूप में नारियल के पौधों पर हमला करता है। इस रोग की रोकथाम के लिए तरबूज के पौधों पर कार्बेरिल 50 धूल का छिड़काव मध्यम मात्रा में करें।

Tarbooj ki kheti के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Watermelon Fruit Harvesting, Yield and Benefits)

बीज बोने के 85 से 90 दिन बाद जलीय तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। यदि फल पर लगा हुआ पेड़ सूखा दिखने लगे तो उसे उखाड़ देना चाहिए। इसके अलावा अगर फल का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे तो समझ लें कि फल पूरी तरह से पक चुका है.

एक बार Tarbooj ki kheti तुड़ाई के बाद फल को ठंडे स्थान पर संग्रहित करके सुरक्षित रखें। उन्नत किस्म की प्रति हेक्टेयर 200 से 600 क्विंटल तक उपज किसान प्राप्त कर सकते हैं। इसका बाजार मूल्य 8 से 10 रुपये प्रति किलोग्राम है, जिससे भाई किसानों को इसकी एक बार की फसल से 2 से 3 लाख रुपये आसानी से मिल सकते हैं।

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Tarbooj ki kheti FaQs?

तरबूज की बुवाई कौन से महीने में होती है?

जून-जुलाई

तरबूज कितने दिन में फल देता है?

78 से 90 दिनों के बाद

1 एकड़ में तरबूज का उत्पादन कितना होता है?

140 से 160 क्विंटल

तरबूज एक बीघा में कितना होता है?

24 टन

तरबूज की नर्सरी कब तैयार करें?

जनवरी से मार्च तक

तरबूज की सबसे अच्छी वैरायटी कौन सी है?

शुगर बेबी, अर्का ज्योति, पूसा बेदाना

1 एकड़ में तरबूज कितना निकलता है?

140 से 160 क्विंटल

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