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Bel ki kheti | बेल की खेती कैसे करें | Vine Farming in Hindi | बेल की प्रजातियां | Vine Cultivation

किसान भाई Bel ki kheti कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. अगर आप भी बेल की खेती करने की योजना बना रहे हैं तो इस लेख में आपको बेल की खेती कैसे करें (Vine Farming in Hindi) और बेल की खेतीकी किस्मों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

Table of Contents

Bel ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Vine Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

Bel ki kheti

Bel ki kheti को किसी भी उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसकी फसल को पठारी, कंकरीली, बंजर, कठोर, रेतीली सभी तरह की भूमि में आसानी से ऊगा सकते है हालाँकि बलुई दोमट मिट्टी में इसकी उपज अधिक होती है।

Bel ki kheti के लिए भूमि में जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि जलभराव के कारण इसके पौधों में कई प्रकार की बीमारियाँ लगती हैं। इसकी खेती में भूमि. पी.एच. मान 5 और 8 के बीच होना चाहिए.

बेल शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में पाई जाती है। इसके पौधे मध्यम सर्दी और गर्मी के मौसम में पनपते हैं। लेकिन लंबी सर्दियाँ और जमा देने वाला तापमान पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके पौधों को बारिश की जरूरत नहीं है.

इसके पौधे मध्यम तापमान में पनपते हैं. अंगूर के पौधे अधिकतम 50 डिग्री तथा न्यूनतम 0 डिग्री तापमान आसानी से सहन कर सकते हैं और पौधे 30 डिग्री के तापमान में भी पनपते हैं।

Bel ki kheti की प्रजातियां (Vine Species)

पूसा उर्वशी

ऐसे पौधे लम्बे देखे गए हैं और ये किस्में कम समय में बड़ी फसल पैदा करती हैं। इसके पौधों पर लगने वाले फल गोल होते हैं और उनमें बहुत सारे कांटे पाए जाते हैं। ऐसे पौधों की पैदावार 60 से 80 किलोग्राम तक होती है।

नरेन्द्र बेल

इस प्रकार के पौधे पर लगने वाले फल गोल-गोल नजर आते हैं. इसके पौधे पर पूर्ण रूप से पके फल का रंग हल्का पीला होता है तथा फल का रस बहुत मीठा होता है। इसके पूर्ण विकसित पौधों से 50 किलोग्राम तक उपज प्राप्त की जा सकती है. इन किस्मों को नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद द्वारा विकसित किया गया है।

पंत सुजाता

इन लताओं में उगने वाले पौधे मध्यम ऊँचाई के होते हैं, और पौधों पर लगने वाली शाखाएँ चौड़ी होती हैं। इसके पौधों पर लगने वाले फल सिरे पर चपटे और मध्यम आकार के होते हैं. इस किस्म में लगने वाले फल हल्के पीले रंग के होते हैं और इनमें कई रेशेदार तंतु पाए जाते हैं।

सी आई एस एच बी

इन बेल को तैयार होने में काफी समय लगता है। इसके पौधे अप्रैल से मई तक फल देना शुरू कर देते हैं. इसकी कली से निकलने वाला फल गोल आकार का होता है और फल मीठा और स्वादिष्ट होता है।

पंत अर्पणा

इन पौधे पर शाखाएँ अधिक देखी जाती हैं, अत: शाखाएँ नीचे-नीचे होती हैं। इसमें लगने वाला फल पर्याप्त रूप से बड़ा होता है तथा इसमें खट्टे-मीठे फल पाये जाते हैं। इसका एक प्लांट एक साल में 50 KG का उत्पादन करता है।

नरेन्द्र बेल 7

इस क़िस्म के बेल में निकलने वाले फल आकार में बड़े होते है, एक फल का वजन लगभग 3 किलोग्राम होता है। इसका पूर्ण विकसित पौधा एक वर्ष में 80 किलोग्राम उत्पादन करता है। इन बेलों को नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद द्वारा विकसित किया गया था।

गोमा यशी

इन किस्मों को केन्द्रीय बागवानी प्रयोग केन्द्र, गोधरा (गुजरात) के माध्यम से तैयार किया गया है। इन बेलों को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस किस्म का एक पेड़ प्रति वर्ष 70 किलोग्राम उपज देता है।

Bel ki kheti की तैयारी और उवर्रक (Vine Field Preparation and Fertilizer)

Bel ki kheti के पौधे गड्ढों में उगाए जाते हैं. इसलिए खेत में गड्डो को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है,

जिससे सूर्य की रोशनी खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से प्रवेश कर जाती है। इसके बाद खेत की दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई की जाती है. जुताई करने के बाद खेतों में सिंचाई की जाती है, सिंचाई के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी लगने लगती है तो इसी बीच खेत की जुताई करने के लिए रोटावेटर का उपयोग किया जाता है,

इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | मिट्टी को भुरभुरा करने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे |

इस प्रकार खेत तैयार हो जाता है. इसके बाद समतल खेत में 6 मीटर की दूरी रखते हुए एक से डेढ़ फ़ीट चौड़े और एक फ़ीट गहरे गड्डो को तैयार कर लिया जाता है | 

इन सभी गड्डो को खेत में 5 से 6 मीटर की दूरी पर एक पंक्ति में तैयार करें। इन गड्डो को तैयार करते समय मिट्टी में रसायन और उर्वरक मिलाकर गड्डो को भर दिया जाता है। इसके लिए 10 किलोग्राम जैविक खाद और 50 ग्राम पोटाश, 50 ग्राम नाइट्रोजन और 25 ग्राम फास्फोरस को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गड्ढों को भर दें.

Bel ki kheti के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Vine Plants Right time and Method of Transplanting)

बेल के बीज की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इन पौधों को खेत में तैयार कर लिया जाता है, या किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लिया जाता है | इसके बाद इन पौधों को खेत में एक महीने पूर्व तैयार गड्डो में लगा दिया जाता है |

पौधा रोपाई से पहले तैयार गड्डो के बीच में एक छोटे आकार का गड्डा बना लिया जाता है | इसी छोटे गड्डे में पौधों की रोपाई कर उसे चारो तरफ अच्छे से मिट्टी से ढक दिया जाता है |

रोपण से पहले, गड्ढों को बाविस्टिन या उचित मात्रा में गोमूत्र से उपचारित किया जाता है। इससे शुरुआत में पौधे में बीमारी लगने का खतरा कम हो जाता है और पौधे का विकास बेहतर होता है.

बेल के पौधे किसी भी समय लगाए जा सकते हैं, लेकिन सर्दी का मौसम रोपाई के लिए उपयुक्त नहीं होता है। यदि किसान बेल की व्यावसायिक खेती कर रहा है तो उसे इसकी पौध मई और जून माह में लगानी चाहिए. इसके पौधों को सिंचित क्षेत्रों में मार्च माह में भी उगाया जा सकता है.

Bel ki kheti के पौधों की सिंचाई (Vine Plants Irrigation)

बेल के पौधों को सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता होती है. इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है इसके अलावा गर्मियों में इसके पौधों को 8 से 10 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए और सर्दियों में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए.

बरसात के मौसम में यदि आवश्यक हो तो ही पौधों को पानी दें। जब उनके पौधे पूर्ण रूप से बड़े हो जाते हैं, उस दौरान उनके पेड़ों को साल में केवल 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

Bel ki kheti के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Vine Plants Weed Control)

बेल वाले पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक निराई-गुड़ाई विधि का प्रयोग किया जाता है। जब खेत में गुड़ाई खेत में खरपतवार दिखाई देने पर की जाती है |

शुरुआत में उनके पौधों को साल में केवल चार से पांच गुड़ाई की जरूरत होती है। बड़े बेल वाले पौधों को अधिक निराई-गुड़ाई की जरूरत नहीं होती, जब पेड़ 7 साल का हो जाए, उस समय साल में केवल एक से दो गुड़ाई की ही करनी चाहिए।

बेल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Vine Plants Diseases and Prevention)

क्रम संख्यारोगरोग का प्रकारउपचार
1.बेल कैंकर  फफूंद  कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन सल्फेट का छिड़काव
2.डाई बैक  फफूंदकॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव
3.छोटे फलों का गिरना  फफूंद  कार्बेन्डाजिमका छिड़काव
4.पत्ती पर काला धब्बाफफूंद  बाविस्टिन का छिड़काव  
5.चितकबरी सुंडीकीट  नीम के तेल या थियोडेन का छिड़काव
6.सफेद फंगलफफूंदमिथाइल पैराथियान और गम एकेशियाका छिड़काव

बेल के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Bael Fruit Harvesting, Yield and Benefits)

बेल के पौधों को पैदावार देने में 7 वर्षा का समय लग जाता है | जब इसके पौधों पर लगे फल हरे, पीले रंग के दिखाई देने लगे, उस दौरान फलो की तुड़ाई कर ले |

फलो की तुड़ाई कर उन्हें बाजार में बेचने के लिए एकत्रित कर ले | बेल के एक पौधे से आरम्भ में तक़रीबन 40KG का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | यह उत्पादन पेड़ की आयु बढ़ने के साथ-साथ बढ़ जाता है |

बेल का बाज़ारी भाव काफी अच्छा होता है, जिससे किसान भाई बेल की खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते है |

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ब्लूबेरी की खेती कैसे करे

Bel ki kheti FaQs?

बेल का पेड़ कब लगाया जाता है?

जुलाई-अगस्त माह में

बेल का पेड़ कैसे उगाएं?

बेल के बीज की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इन पौधों को खेत में तैयार कर लिया जाता है, या किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लिया जाता है | इसके बाद इन पौधों को खेत में एक महीने पूर्व तैयार गड्डो में लगा दिया जाता है | पौधा रोपाई से पहले तैयार गड्डो के बीच में एक छोटे आकार का गड्डा बना लिया जाता है | इसी छोटे गड्डे में पौधों की रोपाई कर उसे चारो तरफ अच्छे से मिट्टी से ढक दिया जाता है |

बेल का पेड़ कितने दिनों में फल देता है?

3-4 वर्षों में

बेल का पेड़ किधर लगाना चाहिए?

उत्तर या पश्चिम दिशा में

बेल का दूसरा नाम क्या है?

शाण्डिल्रू (पीड़ा निवारक), श्री फल, सदाफल

बेल का पेड़ कब लगाया जाता है?

जुलाई-अगस्त माह में

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