Jeera ki kheti | जीरा की खेती कैसे करें | Cumin Farming in Hindi | जीरा का भाव | Cumin Cultivation

भारत में Jeera ki kheti राजस्थान और गुजरात में केंद्रित है, जहां पूरे देश में 80% जीरा पैदा होता है, 28% जीरा केवल राजस्थान राज्य में, इसके पश्चिमी क्षेत्र में उत्पादित किया जाता है, और सभी जीरे का 80% उत्पादन होता है। स्थिति यह है कि % जीरा पैदा होता है।

वही पड़ोसी राज्य गुजरात राजस्थान से भी ज्यादा ऑफर करता है। वर्तमान में जीरे की उन्नत किस्म उगाकर उत्पादन क्षमता 25% से 50% तक बढ़ाई जा सकती है। अधिकांश किसान भाई उन्नत किस्म के जीरे की खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं.

अगर आप भी जीरा उगाना चाहते हैं तो इस लेख में आपको जीरा कैसे उगाएं (Jeera ki kheti इन हिंदी) और जीरे की कीमत के बारे में जानकारी दी जा रही है.

Table of Contents

Jeera ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Cumin Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

अच्छे जीरे के लिए रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए तथा मिट्टी का पी.एच. मूल्य भी उचित होना चाहिए. जीरे की फसल रबी की फसल के साथ उगाई जाती है, इसलिए इसके पौधे ठंडी जलवायु में पनपते हैं।

उनके पौधों को पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता होती है, और गर्म मौसम उनके पौधों के लिए उपयुक्त नहीं है। जीरे के पौधों को रोपण के बाद 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, और पौधों के बढ़ने पर 20 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है। इसके पौधे अधिकतम तापमान 30 डिग्री और 20 डिग्री तक आसानी से सहन कर सकते हैं.

Jeera ki kheti की उन्नत किस्में (Cumin Improved Varieties)

जी.सी. 1

Jeera ki kheti की ये किस्में रोपण के 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इस उन्नत किस्म को गुजरात कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है। इन किस्मों की पैदावार 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इनके पौधे रोगमुक्त होते हैं.

जी. सी. 4

जीरे की इन किस्मों को गुजराती 4 नाम से भी जाना जाता है। उनके पौधों में 110 दिनों के बाद नए बीज आने पर फल लगने लगते हैं, जिससे एक हेक्टेयर के 8 भाग की उपज गर्म और गहरे भूरे रंग की होती है।

आर. जेड. 209

जीरे की इन किस्मों में पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं, जो बुआई के 120 से 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. प्रति हेक्टेयर उपज लगभग 8 क्विंटल है, और पौधे पर आने वाले चावल का आकार मजबूत होता है। जीरे की इन किस्मों में झुलसा रोग नहीं लगता है.

आर. जेड. 19

इस किस्म के पौधे रोपण के 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं, इनकी उपज 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. परिणामी फल का रंग गहरा और गहरा भूरा होता है। जीरे की इन किस्मों में उकठा एवं जलन रोग नहीं देखा जाता है.

Jeera ki kheti की तैयारी और उवर्रक (Cumin Field Preparation and Fertilizer)

Jeera ki kheti की फसल करने से पहले इसके खेतों को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है. इस प्रयोजन के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी की गहरी जुताई की जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है.

इसके बाद प्राकृतिक खाद के रूप में 10 गाड़ियों में पुराना गोबर भरकर खेत की जुताई की जाती है, जिससे खाद खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाती है। एक बार जब खाद मिट्टी में मिल जाती है, तो 2 से तीन तिरछी रेखाएं बनाई जाती हैं। जुताई के बाद खेत को जोतने के लिए सिंचाई का प्रयोग किया जाता है.

खेत की जुताई के बाद आखिरी बार 65 किलो डी.ए.पी. खेत में 9 किलो यूरिया का छिड़काव करना पड़ा. इसके बाद रोटावेटर का उपयोग कर खेत की मिट्टी को कम किया गया। मिट्टी जमने के बाद खेत को लेवलिंग एजेंट से समतल कर दिया जाता है।

इस कारण खेत में जल संचयन की समस्या उत्पन्न नहीं होती है. इसके अलावा पौधे के बड़े होने पर तीसरी सिंचाई में 20 से 25 किलोग्राम यूरिया पौधे को देना चाहिए.

Jeera ki kheti के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Cumin Plants Transplanting Right time and Method)

jeera ki kheti

जीरे को बीज के रूप में उगाया जाता है। इस प्रयोजन के लिए छिड़काव और ड्रिल विधियों का उपयोग किया जाता है। ड्रिल विधि से रोपाई के लिए एक एकड़ खेत में 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.

बीज फैलाने की इसी विधि से प्रति एकड़ खेत में 12 किलोग्राम बीज डालना आवश्यक है। खेत में बोने से पहले बीजों को उचित मात्रा में कार्बोनेज़िम से उपचारित किया जाता है। नई रोपाई के लिए खेत में 5 फुट के अंतर पर छिड़काव विधि से क्यारियाँ तैयार की जाती हैं।

इन क्यारियों में बीजो का छिड़काव कर उन्हें हाथ या दंताली से दबा दिया जाता है| इस कारण बीज सतह से एक से डेढ़ सेमी नीचे दब जाते हैं।

इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि से बीज बोना चाहते हैं तो इसके लिए आपको खेत में पंक्तियां तैयार करनी होंगी, प्रत्येक पंक्ति के बीच एक कदम रखना होगा. बीजों को 10 से 15 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोया जाता है। चूंकि जीरे की फसल रबी की फसल के साथ उगाई जाती है, इसलिए इसके बीज नवंबर के अंत तक बोए जाते हैं।

Jeera ki kheti के पौधों की सिंचाई (Cumin Plants Irrigation)

Jeera ki kheti के पौधों को सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता होती है. प्रारंभिक सिंचाई और सिंचाई बीज बोने के तुरंत बाद की जाती है और पहली सिंचाई पानी के धीमे प्रवाह से की जानी चाहिए, ताकि तेज बहाव के कारण बीज बह न जाएँ। उनके अधिकांश पौधों को 5 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई के बाद बाकी सिंचाई 10 से 12 दिन के अंदर कर देनी चाहिए.

Jeera ki kheti के पौधों में खरपतवाऱ नियंत्रण (Cumin Plants Weed Control)

Jeera ki kheti में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों का उपयोग किया जाता है। रासायनिक विधि में ऑक्साडियार्गिल की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर घोल तैयार किया जाता है, जिसे बुआई के बाद खेत में छिड़का जाता है।

खरपतवार हटाने वाले पौधे प्राकृतिक तरीकों से तैयार किये जाते हैं। इसकी पहली खरपतवार बीज बोने के लगभग 20 दिन बाद लगानी चाहिए और बाकी खरपतवारों की कटाई 15 दिन के अंदर कर लेनी चाहिए। इनके पौधों को अधिकतम दो से तीन निराई-गुड़ाई की ही जरूरत होती है.

Jeera ki kheti के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Cumin Plants Diseases and Prevention)

मोयला

यह एक कीट जनित रोग है, जो जीरे के पौधे के नाजुक भागों पर आक्रमण कर उसका रस चूस लेता है। यह रोग पौधों पर फूल आने के समय सबसे अधिक देखने को मिलता है। यदि प्रकोप अधिक हो तो पौधे सूखकर पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर पर्याप्त मात्रा में मैलाथियान या डाइमेथोएट का छिड़काव किया जाता है.

छाछया रोग

जीरे के पौधों पर कवक के रूप में आक्रमण करती है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं तथा रोग अधिक गंभीर होने पर पूरी पत्ती सफेद हो जाती है। इससे पौधे रोशनी पैदा नहीं कर पाते और पौधे बढ़ना भी बंद कर देते हैं। पौधों पर घुलनशील सल्फर या कैराथेन की मध्यम मात्रा का छिड़काव करके इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

दीमक रोग

यह रोग जीरे के पौधों पर अगेती से लेकर कटाई तक किसी भी अवस्था में देखा जा सकता है। दीमक का यह रोग पौधों की जड़ों को प्रभावित कर उन्हें नुकसान पहुंचाता है।

इस रोग से ग्रसित होने पर पौधा कुछ ही समय में नष्ट हो जाता है. यदि यह रोग खड़ी फसल में पाया जाता है तो पौधों की जड़ों पर क्लोरोपाइरीफॉस की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा बीजों को बोने से पहले क्लोरपायरीफॉस या क्विनालफॉस की उच्च मात्रा से उपचारित करना चाहिए.

Jeera ki kheti के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Cumin Plant Harvesting, Yield and Benefits)

जीरे की उन्नत किस्में बुआई के लगभग 100 से 120 दिन बाद फल देने के लिए तैयार हो जाती हैं। जब इसके पौधे में लगे बीजों का रंग हल्का भूरा होने लगे तो उस समय फूलों को काट कर इकट्ठा कर लिया जाता है और खेत में ही सुखा लिया जाता है. इसके बाद सूखे फूलों से यंत्रवत् बीज निकाल दिए जाते हैं। उन्नत किस्मों से जीरे के एक हेक्टेयर खेत से लगभग 7 से 8 क्विंटल फसल प्राप्त होती है.

जीरा का भाव

जीरे का बाजार भाव 200 रुपये किलो तक जाता है और ऐसे में किसान भाई जीरे की एक फसल से 40 से 50 हजार तक की कमाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

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Jeera ki kheti FaQs?

जीरा कौन से महीने में बोया जाता है?

1 से 25 नवम्बर के मध्य

जीरा उगाने में कितना समय लगता है?

120 दिन

जीरा सबसे ज्यादा कौन से राज्य में होता है?

गुजरात और राजस्थान

जीरा सबसे अच्छा कहां उगता है

यूएसडीए जोन 5-10

जीरा कितने दिन में होता है?

120-125 दिन

भारत में सबसे अच्छा जीरा कहां उगाया जाता है?

देश का लगभग 65 प्रतिशत जीरा उत्पादन गुजरात में होता है जबकि शेष पड़ोसी राज्य राजस्थान से होता है।

जीरा कौन से महीने में बोया जाता है?

1 से 25 नवम्बर के मध्य 

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