चना एक दलहनी फसल है, जो पूरे भारत में उगाई जाती है। विश्व का 75 प्रतिशत चना अकेले भारत में उगाया जाता है।अगर आप भी Chane ki kheti करना चाहते हैं तो इस लेख में आपको बताया गया है कि Chane ki kheti कैसे करें (Gram Farming in Hindi) और चने की बुआई कब करना उपयुक्त है।
Chane ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Gram Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
Chane ki kheti किसी भी उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में की जा सकती है। चने की अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। पी.एच. इसकी खेती में भूमि. मान 6 और 7.5 के बीच होना चाहिए. चने का पेड़ ठंडी जलवायु का होता है,
Chane ki kheti खेती में पौधों को पानी के लिए वर्षा ऋतु में बोया जाता है, अधिक वर्षा भी पौधों के लिए हानिकारक होती है। इसके पौधे ठंडी जलवायु में पनपते हैं, लेकिन सर्दियों की ठंढ पौधों को घायल कर देती है।
गर्मी के दिनों में इसके पौधों पर कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. चने को मध्यम तापमान पर आसानी से उगाया जा सकता है. इसके पौधे 20 डिग्री तापमान में पनपते हैं। चने के पौधे अधिकतम 30 डिग्री और न्यूनतम 10 डिग्री तापमान सहन कर सकते हैं, कम तापमान का असर पैदावार पर पड़ता है.
Chane ki kheti की उन्नत किस्में (Gram Improved Varieties)
मेक्सीकन बोल्ड
Chane ki kheti की इस किस्म को कम समय में पैदावार देने के लिए उगाया जाता है, इसके पौधे 90 से 95 दिनों में पकने लगते हैं और इससे बनने वाला चावल सफेद, चमकदार और सुंदर पाया जाता है। इन किस्मों की पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
जे जी के – 2
ये चने कम समय में उगने के लिए तैयार हो जाते हैं. उसके पौधे रोपण के 90 से 100 दिन बाद अपने आप ठीक हो जाते हैं। इसमें देखा गया कि उभरे हुए दानों का रंग हल्का पीला सफेद होता है। इनके पौधे रोगमुक्त होते हैं. इन किस्मों की पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
काबुली क़िस्म का चना
चने की काबुली किस्म सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूलित है। इस प्रकार की चने की दाल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है और इसे व्यावसायिक तैयारी के लिए भी उगाया जाता है।
वैभव
ऐसे पौधों को अपनी मरम्मत में 110 से 115 दिन का समय लगता है। इसमें निकलने वाले दाने आकार में सामान्य से थोड़े बड़े और रंग में हल्के होते हैं। इसके पौधे अधिक गर्मी सहन नहीं कर पाते तथा इसके पौधों पर मुरझाने की बीमारी नहीं होती है। इन किस्मों की पैदावार 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
जे. जी. 11
इस प्रकार के पौधे को तैयार होने में 110 दिन लगते हैं और इससे प्राप्त चावल हल्के पीले रंग का होता है। ये चने सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में विकास के लिए अनुकूलित हैं। जिसमें से उपज 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
इंदिरा चना
इन पौधों पर फफूंद जनित रोग एवं उकठा रोग देखने को नहीं मिलते हैं. उनके पौधे मध्यम ऊंचाई के हैं और उन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है। ऊष्मायन के 120 दिनों के बाद ये चने फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं। जिससे उन्हें प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल की उपज प्राप्त होती है.
Chane ki kheti की तैयारी और उवर्रक (Gram Field Preparation and Fertilizer)
Chane ki kheti के बीज बोने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है इसलिए खेत की गहरी जुताई की जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ देर के लिए वैसे ही खुला छोड़ दें. परिणामस्वरूप, खेत को बेहतर धूप मिलती है, और मिट्टी में हानिकारक पदार्थ पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं।
पहली जुताई के बाद प्रति एकड़ 10 से 12 गाड़ी पुराना गोबर खाद देना चाहिए। प्रयोग के बाद जुताई करके खाद को अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दिया जाता है। इसके बाद खेत में सिंचाई करके जुताई की जाती है, जुताई के बाद यदि खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देने लगे तो कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई की जाती है.
जुताई के बाद खेत को समतल कर लें, इससे खेत में जलभराव नहीं होता है चने की जड़ों में मौजूद रेशे मिट्टी में मौजूद होते हैं, जो मिट्टी से ही नाइट्रोजन छोड़ते हैं। इस कारण उनके पौधों को कम उर्वरक की आवश्यकता होती है और जैविक उर्वरक सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। डी.ए.पी. खाद के रूप में मात्र एक बोरी। दरें खेत की आखिरी बार जुताई करते समय देनी चाहिए तथा प्रति एकड़ 25 किलोग्राम जिप्सम डालना चाहिए।
Chane ki kheti का सही समय और तरीका (Gram Seeds Sowing Right time and Method)
Chane ki kheti के बीजों को बीज के रूप में उगाया जाता है. एक एकड़ खेत में देशी किस्म लगाने के लिए 80 से 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, और काबुली बीज के लिए 60 से 80 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
रोपण से पहले इन बीजों को उचित मात्रा में गोमूत्र, थीरम, कार्बेन्डाजिम या मैन्कोजेब से उपचारित किया जाता है। इससे बीजों में रोग लगने का खतरा कम हो जाता है और बीज का अंकुरण अच्छा होता है।
इसके बीज रबी फसल के साथ बोए जाते हैं, सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में बुआई का समय अलग-अलग होता है। सिंचित क्षेत्रों में बुआई के लिए अक्टूबर से दिसंबर के बीच का महीना और असिंचित क्षेत्रों में सितंबर से अक्टूबर के बीच का महीना सबसे उपयुक्त होता है।
बीज मशीनरी द्वारा बोया जाता है, जिससे खेत में पंक्तियाँ तैयार की जाती हैं, प्रत्येक पंक्ति के बीच एक से डेढ़ फीट की दूरी होती है। इन बीजों को 20 से 25 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में 5 से 7 सेमी की गहराई में रोपना चाहिए।
Chane ki kheti के पौधों की सिंचाई (Gram Plants Irrigation)
70 से 75 प्रतिशत चना असिंचित क्षेत्रों में बोया जाता है। इससे उनके पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. सिंचित क्षेत्रों में पौधों को पानी कब दें?
इसके पौधों को तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती है, पहली सिंचाई बुआई के 30 से 35 दिन बाद तथा बाद की सिंचाई 25 से 30 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए।
Chane ki kheti के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Gram Plants Weed Control)
Chane ki kheti के पौधों की जड़ें मिट्टी में होती हैं और वे मिट्टी से ही पोषक तत्व प्राप्त करते हैं, इसलिए जब खेत में खरपतवार दिखाई देते हैं, तो पौधे पर्याप्त पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाते हैं।
इसलिए, खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीकों का उपयोग किया जाता है।
खरपतवारों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करने के लिए खेत में दो से तीन बार कटाई करना आवश्यक है, प्रत्येक कटाई 25 दिन के अंतराल पर करें।
खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पौध रोपण के तुरंत बाद पर्याप्त मात्रा में पेंडीमेथालिन का छिड़काव करना चाहिए।
Chane ki kheti के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Gram Plants Diseases and Prevention)
रस्ट
यह रोग चने के पौधों पर फसल पकने के दौरान लगता है. जब इस रोग से पौधे की पत्तियां और अंकुर प्रभावित होते हैं तो पौधे पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए चने के पौधों पर 10 दिन में दो बार पर्याप्त मात्रा में सल्फर या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए.
झुलसा रोग
यह रोग चने के पौधों पर फफूंद के कारण होता है. प्रभावित चने के पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस कारण इसके पौधे सूर्य से पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाते हैं और कुछ समय बाद पौधे पीले पड़ने लगते हैं।
इस रोग से गंभीर रूप से प्रभावित होने पर चने के पौधे पूरी तरह नष्ट होकर गिर जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए चने के पौधों पर 10 दिन में दो बार पर्याप्त मात्रा में सल्फर या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए.
उखटा रोग
दरअसल यह उखटा रोग चने के पौधों पर शुरुआती अवस्था में देखने को मिलता है. इसके बाद पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज बोने से पहले उन्हें ट्राइकोडर्मा, कार्बेन्डाजिम या थीरम से उपचारित करें. इसके अलावा यदि खड़ी फसल पर यह रोग दिखाई दे तो पौधों पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी के साथ रेत का छिड़काव करें.
फली छेदक
यह रोग चने के पौधों पर फली बनते समय लगता है. फली छेदक कीट चने की फली में छेद कर देते हैं और उनके चावल को खा जाते हैं। यह कीट रोग दिखने में हरे रंग का होता है। चने के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए स्पिनोसैड या इंडोक्साकार्ब का उचित दर पर 2 छिड़काव करें।
Chane ki kheti के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Gram Plants Harvesting, Yield and Benefits)
चने की उन्नत किस्में बुआई के 100 से 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। जब इसके पौधों पर पत्तियों का रंग हल्का पीला दिखाई दे और धान सख्त हो, उस समय इसकी कटाई करें. इसके पौधों की कटाई ज़मीन के करीब से की जाती है. कटाई के बाद पौधों को कुछ देर के लिए उसी खेत में सूखने के लिए छोड़ दें.
पौधे के सूखने के बाद इसके बीजों को बेलन की सहायता से निकाल लिया जाता है. एक हेक्टेयर खेत से 15 से 20 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है.
चने का बाजार भाव 4 हजार से 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, भाई किसान चने की बुआई करके एक एकड़ खेत से 60 हजार से 1 लाख रुपये तक कमा सकते हैं.
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Chane ki kheti FaQs?
चने की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है?
130-135 दिन
एक बीघा में चना कितना होता है?
18 किलोग्राम
सबसे अधिक पैदावार देने वाला चना कौन सा है?
चने की (दिग्विजय) फुले 9425-5 किस्म
एक एकड़ में कितना चना बोया जाता है?
20 से 25 किलोग्राम
चना कौन से महीने में लगाया जाता है?
अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक
चने की फसल में कितनी बार पानी देना चाहिए?
3 से 4 बार
सबसे अधिक पैदावार देने वाला चना कौन सा है?
चने की (दिग्विजय) फुले 9425-5 किस्म
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