Alsi ki kheti 2024| अलसी की खेती कैसे होती है | Flax Farming in Hindi | अलसी का रेट क्या है | Linseed Cultivation

अलसी उत्पादन में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है। इस पोस्ट में आपको Alsi ki kheti कैसे करें (Flax खेती इन हिंदी) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है, इसके अलावा अलसी का रेट क्या है, यह भी बताया गया है।

Table of Contents

Alsi ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Linseed Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)

Alsi ki kheti की फसल में अच्छी जल निकासी वाली काली चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | सामान्य P.H. मान वाली भूमि इसकी खेती के उपयुक्त होती है | 

Alsi ki kheti की फसल के लिए ठंडी, शुष्क जलवायु अनुकूल मानी जाती है। हमारे देश में इसकी खेती रबी की फसल के बाद की जाती है.

सामान्य वर्षा इसकी उर्वरता के लिए लाभदायक है, 40 से 50 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अलसी की खेती आसान है। इसके पौधे सामान्य तापमान में पनपते हैं, बीज अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

Alsi ki kheti की उन्नत किस्में (Linseed Improved Varieties)

Alsi ki kheti

अलसी की टी 397 किस्म

ये पौधे दो फुट से भी अधिक लम्बे पाए जाते हैं। अलसी की इन प्रजातियों के पौधे पर अनेक शाखाएँ पाई जाती हैं। इसके बीजों से तेल की मात्रा का चौवालीस प्रतिशत प्राप्त होता है और जिन फूलों से इसे निकाला जाता है उनका रंग नीला होता है। ये किस्में सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में आसानी से उगाई जाती हैं। इसकी पैदावार 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

अलसी की जे. एल. एस. – 66 किस्म

इस किस्म के पौधों को असिंचित जगहों में उगाने के लिए तैयार किया गया है | इसमें उगने वाले पौधे लगभग 2 फीट ऊंचे होते हैं। अलसी की ये किस्में उकठा, असिता और ब्लाइट जैसे रोगों से मुक्त हैं। इसकी पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

अलसी की आर एल सी 6 किस्म

अलसी की ये किस्में ब्लाइट और रिकेट्सियल रोग के प्रति भी प्रतिरोधी हैं। इसका फल छोटा होता है और इसमें 42 प्रतिशत तक तेल होता है। यह सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में आसानी से उगाया जाता है। सिंचित क्षेत्रों में इसकी पैदावार 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और असिंचित क्षेत्रों में 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

इसके अलावा अलसी की कई किस्में भी उगाई जाती हैं। स्थान और उत्पादन के आधार पर वर्गीकृत। यहां आपको अलसी की कई किस्मों के बारे में बताया जा रहा है, जैसे:- आरएल – 933, आरएल 914, जवाहर 23, पूसा 2, पीकेडीएल 42, जवाहर अलसी – 552, जे. एल. एस.-27, एलजी 185, जे.; एल एस. – 67, पीकेडीएल 41, जवाहर अलसी – 7 इत्यादि।

Alsi ki kheti की तैयारी (Linseed Field Preparation)

Alsi ki kheti के सफल उत्पादन के लिए इसके बीज को खेत में बोने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए. इसके लिए खेत की पहली अच्छी तरह से गहरी जुताई कर देनी चाहिए |

इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए. इसके बाद प्रति हेक्टेयर 10 पुरानी गोबर की खाद खेत में डाल देनी चाहिए.

नियमित वर्षा इसकी उर्वरता के लिए लाभदायक है, 40 से 50 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अलसी की खेती आसान है। इसके पौधे मध्यम तापमान में पनपते हैं, बीज अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

Alsi ki kheti के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Linseed Seeds Right time and method Planting)

Alsi ki kheti के पौधों को बीज के रूप में उगाया जाता है। इस प्रयोजन के लिए, बीजों को खेत में बिखेर दिया जाता है या ड्रिल विधि का उपयोग किया जाता है। अलसी के बीज क्रमानुसार बोए जाते हैं। इस प्रकार बीज बोने से पहले खेत में एक फुट की दूरी पर कतारें तैयार कर ली जाती हैं. बीजों की कतारें 5 से 7 इंच की दूरी पर रखनी चाहिए।

अगर आप इसके बीजों को छिटकवां विधि से उगाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको बीजों को समतल खेतों में फैलाना होगा और  जुताई कर देनी चाहिए |

इससे बीज खेत की मिट्टी में अच्छी तरह घुल-मिल सकेंगे। छिड़काव विधि से रोपण के लिए 40 से 45 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, जबकि ड्रिल विधि से रोपण के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.

बीज को खेत में बोने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि बीज को पर्याप्त मात्रा में कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा विराइड से उपचारित कर लें. इससे इनके बीजों में रोग लगने का खतरा कम हो जाता है.

नवंबर का महीना सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है और अक्टूबर का महीना असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है जहां अलसी की खेती की जाती है।

Alsi ki kheti के पौधों की सिंचाई (Linseed Plants Irrigation)

Alsi ki kheti के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. उनके पौधों को केवल दो से तीन पानी की आवश्यकता होती है। उसमें से पहली सिंचाई बुआई के लगभग एक महीने बाद की जाती है और दूसरी फसल तब दी जाती है जब पौधों में फूल आ रहे हों। आखिरी और तीसरी बार बीज बनने के समय पानी दिया जाता है.

Alsi ki kheti के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Linseed Plants Weed Control)

अलसी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता कम ही होती है। इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक (निराई-निराई) विधि का प्रयोग किया जाता है.

इसके अलावा रसायनों के प्रयोग से भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए खेत में पेंडीमेथालिन 30 ईसी का प्रयोग करें. बीज प्रतिस्थापन के बाद उचित छिड़काव दर लागू की जानी चाहिए।

Alsi ki kheti में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Linseed Plants Diseases and their Prevention)

उकठा रोग

इस बीमारी का निदान किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियाँ अंदर की ओर मुड़ने लगती हैं और मुरझाने लगती हैं तथा पत्तियाँ बदरंग होकर गिरने लगती हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर ट्राइकोडर्मा की पर्याप्त मात्रा का छिड़काव करना चाहिए.

भभूतिया रोग

इस बीमारी को चर्निल असिता के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग अधिकतर बरसात के मौसम में देखने को मिलता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है और पौधा प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाता है, जिससे पौधे की वृद्धि पूरी तरह से रुक जाती है। थायोफेनिल मिथाइल के छिड़काव से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

फली मक्खी रोग

फल मक्खी रोग एक सामान्य कीट रोग है, जो आमतौर पर पौधों पर पाया जाता है। लेकिन यह रोग उपज को बुरी तरह प्रभावित करता है. कुछ कीड़ों के लार्वा फूलों की शाखाओं में अपने अंडे देते हैं, जिसके बाद पौधे में बीज नहीं बन पाते हैं। यह रोग पैदावार को 70 प्रतिशत तक प्रभावित करता है।

यह कीट नारंगी रंग का होता है और इसके पंख ध्यान देने योग्य होते हैं। पर्याप्त मात्रा में इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करके इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा अलसी के पौधों में कई प्रकार के रोग देखने को मिलते हैं, जैसे:- चने की इल्ली, भभूतिया रोग, अल्टरनेरिया ब्लाइट, केसर आदि।

फसल की कटाई, पैदावार और अलसी का रेट क्या है (Flaxseed Harvesting, Yield, Benefits and Rate)

अलसी के पौधे रोपण के 120 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसा तब करना चाहिए जब उसके पौधे काफी सूखे हुए दिखाई देने लगें. इसे जड़ के पास से काटना चाहिए. इसके बाद बीजों को झाड़कर पौधे से अलग कर लेना चाहिए.

इसकी उपज भी किस्म के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। इसके पौधों से प्रति हेक्टेयर खेत में 15 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है तथा असिंचित क्षेत्रों में 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है. उत्कृष्ट बाजार मूल्य निर्धारण के साथ, इसके संयंत्रों से 38% तक की वृद्धि प्राप्त की जा सकती है। स्वाभाविक रूप से किसान भाई एक ही फसल से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।

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Alsi ki kheti FaQs?

अलसी की पैदावार कितनी होती है?

10 से 15 क्विंटल पैदावार प्रति हेक्टेयर

अलसी उगाने में कितना समय लगता है?

90 से 110 दिन

भारत में अलसी कहां उगाई जाती है?

मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम

अलसी एक बीघा में कितनी होती है?

असिंचित अलसी की खेती की औसत पैदावारी 2 से 3 क्विंटल प्रति बीघा के मान से होती है

अलसी की बुवाई कब करनी चाहिए?

असिंचित क्षेत्रो में अक्टूबर के प्रथम पखवाडे़ में तथा सिचिंत क्षेत्रो में नवम्बर के प्रथम पखवाडे़ में

अलसी की खेती कौन से मौसम में की जाती है?

रबी सीजन के दौरान

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